Thursday, July 25, 2024

Common Sense is very Uncommon!

किसी जमाने में पं. विष्णुदत्त शास्त्री ज्योतिष के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे।

उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था, पंडित जी ने दाई से कह रखा था कि जैसे ही बालक का जन्म हो, एक नींबू प्रसूति कक्ष से बाहर लुढ़का देना।

बालक का जन्म हुआ... लेकिन बालक रोया नहीं। तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी, पीठ को मला और अंततः बालक रोने लगा।

दाई ने नींबू बाहर लुढ़का दिया और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।

उधर पंडित जी ने गणना की तो पाया कि बालक कि कुंडली में "पितृहंता योग" है, अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों उनकी ही मृत्यु का योग। पंडित जी शोक में डूब गए और पुत्र को इस लांछन से बचाने के लिए बिना कुछ बताए घर छोड़कर चले गए।

सोलह साल बीते...

बालक अपने पिता के विषय में पूछता, लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सब कुछ बताकर चुप हो जाती। क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।

अस्तु !! पंडित जी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना...!

उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई...

राजा ने डौंडी पिटवाई कि जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा उसे मुंह मांगा इनाम मिलेगा। लेकिन गलत साबित हुई तो उसे मृत्युदंड मिलेगा !

बालक ने गणना की और निकल पड़ा।

लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।

"राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी"
वृद्ध ज्योतिषी ने कहा।

बालक ने अपनी गणना से मिलान किया,,
और आगे आकर बोला,,
"महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा"

राजा ने अनुमति दे दी,,
"राजन वर्षा आज ही होगी,,
लेकिन चार बजे नहीं,,
बल्कि चार बजने के कुछ पलों के बाद होगी"

वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया,,

इस पर वृद्ध ज्योतिषी ने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली, "महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे,, और... ओले पचास ग्राम के होंगे"

पर बालक ने फिर गणना की,,
"महाराज ओले गिरेंगे,,
लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से अडतालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा"

अब बात ठन चुकी थी,,
लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का
इंतजार करने लगे !!

साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा भी नहीं था,,लेकिन अगले बीस मिनट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी, अंधेरा सा छा गया।

बिजली कड़कने लगी...
लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद नहीं गिरी। लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनट हुए,, मूसलाधार वर्षा होने लगी।

वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया,,

आधे घण्टे की बारिश के बाद
ओले गिरने शुरू हुए, राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये,, कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला।

शर्त के अनुसार वृद्ध ज्योतिषी को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया,,

और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा !
"महाराज,, इन्हें छोड़ दिया जाये"
बालक ने कहा !

राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया !
"बजाय धन संपत्ति मांगने के तुम इस अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो ?"

बालक ने सिर झुका लिया,,
और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया,,
तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे,,

"क्योंकि ये सोलह साल पहले मुझे छोड़कर गये मेरे पिता श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं"

वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा,,

दोनों महल के बाहर चुपचाप आये,,
अंततः पिता का वात्सल्य
छलक पड़ा,,
और फफक कर रोते हुए बालक को गले लगा लिया,,

"आखिर तुझे कैसे पता लगा,,
कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ"

"क्योंकि आप आज भी गणना तो सही करते हैं,,
लेकिन कॉमन सेंस का प्रयोग नहीं करते"

बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा,,
"मतलब" ??  पिता हैरान था !

"वर्षा का योग चार बजे का ही था,,
लेकिन वर्षा की बूंदों को पृथ्वी की सतह तक आने में कुछ समय लगेगा कि नहीं ???"

"ओले पचास ग्राम के ही बने थे,,
लेकिन धरती तक आते-आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं ???"

"और..."
"दाई माँ बालक को जन्म लेते ही
नींबू थोड़े फेंक देगी,,

उसे भी कुछ समय बालक को
संभालने में लगेगा कि नहीं ???

और उस समय में ग्रहसंयोग
बदल भी तो सकते हैं..??

और... “पितृहंता योग”
“पितृरक्षक योग” में भी
तो बदल सकता है न ???

पंडितजी के समक्ष जीवन भर की त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी,,

और वह समझ गए,,
कि केवल दो शब्दों के गुण के
अभाव के कारण वह जीवन भर
पीड़ित रहे और वह था -

'कॉमन  सेंस'...

Sunday, June 30, 2024

The AI Universe

 


स्वर्ण मंदिर - हरिमन्दिर साहिब - Golden Temple

सन 1757 तुर्क लुटेरा अहमद शाह अब्दाली लूटपाट करता पंजाब में घुसा। आम बाजारों को लूटना, सामान्य जन का सामूहिक कत्लेआम, स्त्रियों बच्चों को गुलाम बनाना तो सामान्य बात थी, पर इसके अतिरिक्त एक और काम हुआ। अमृतसर स्वर्ण मंदिर को अपवित्र कर दिया गया। 
 
तालाब में गाय काट कर डाली गई, और मन्दिर पर अब्दाली का कब्जा हो गया। अब्दाली लौटा तो अपने बेटे को पंजाब का सूबेदार बना गया। तथाकथित महान सिख साम्राज्य के पास इतना बल नहीं था कि वे अपने स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा सकें। ऐसे विकट समय मे समूचे भारतवर्ष में एक ही व्यक्ति था, जिसपर उनकी उम्मीद टिक गई। और फिर मदद के लिए एक करुण चिट्ठी पहुँची पुणे। मराठा साम्राज्य के तात्कालिक पेशवा बालाजी बाजीराव के पास... वे शिवाजी के सैनिक थे, हिंदुत्व के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देने वाले योद्धा! 
 
महान पेशवा बाजीराव बल्लाळ की महान शौर्य परम्परा के वाहक! वे भला कैसे न आगे आते? तो पेशवा ने आदेशित किया अपने छोटे भाई, सेनापति पण्डित रघुनाथ राव राघोबा को। रघुनाथ राव के लिए यह सत्ता का कार्य नहीं, धर्म का कार्य था। वे अपनी सेना के साथ पहुँचे सरहिंद, और एक झटके के साथ समूचा पंजाब मुगलों और अफगानों के अत्याचार से मुक्त हो गया। स्वर्ण मंदिर पुनः पवित्र हुआ। वहाँ की पवित्र पूजा परम्परा पुनः स्थापित हुई। धर्म का ध्वज पुनः लहराने लगा। 
 
पर रुकिये। क्या कथा यहीं पूर्ण होती है? नहीं। 
 
कथा तो अब प्रारम्भ होती है। सन 1761 में अहमद शाह अब्दाली पुनः लौटा। पानीपत के मैदान में वही राघोबा भारत का ध्वज लिए अब्दाली का सामना करने के लिए खड़े थे। देश की अधिकांश हिन्दू रियासतें अपनी सेना लेकर उनके साथ खड़ी थीं। 
 
पर सिक्ख? नहीं। वे नहीं आये। यहाँ तक कि राघोबा की सेना के भोजन के लिए अन्न देने तक से मना कर दिया। युद्ध मे मराठों की पराजय हुई। सदाशिव राव, विश्वास राव और असंख्य मराठा सरदारों को वीरगति प्राप्त हुई। उधर पुत्र और भाई की मृत्यु से टूट गए पेशवा बालाजी की भी मृत्यु हो गयी। कहते हैं, तब समूचे महाराष्ट्र में एक भी घर ऐसा नहीं था जिसके एक दो सदस्य वीरगति न प्राप्त किये हों। 
 

अब्दाली की सेना में भी केवल एक चौथाई सैनिक बचे थे। रुकिये तो। पानीपत युद्ध जीतने के बाद अपनी बची खुची सेना और हजारों भारतीय स्त्रियों बच्चों को गुलाम बना कर लौटता अब्दाली उसी पंजाब के रास्ते से गया। 
 
किसी ने उस लुटेरे के ऊपर एक पत्थर तक नहीं फेंका जी। वापस पहुँच कर अब्दाली ने 727 गांवों की जागीरदारी दी, जिससे पटियाला राज्य की स्थापना हुई। 
 
पर क्या अब्दाली रुका? नहीं दोस्त। वह एक साल बाद ही वापस लौटा और सबसे पहले बारूद से स्वर्ण मंदिर को उड़वा दिया। 
 
पता नहीं कहानियां लोग भूल कैसे जाते हैं, जबकि किताबें भरी पड़ी हैं। विकिपीडिया पर ही इतना कुछ लिखा हुआ है कि आंखें खुल जाँय, पर पढ़ना किसको है..

Friday, June 21, 2024

19 laws of fundraising

1. Anything is possible. Everything isn't.
2. Difference = donations. Emphasize it.
3. Stop stewarding, start communicating.
4. A pitch without a problem is a problem.
5. You're competing for story, not for glory.
6. It's OK for nonprofits to look a little slick.
7. Donor retention always beats acquisition.
8. Goals can guide, but routines realize funding.
9. Reject presentations, embrace conversations.
10. Sell donors on your vision, not just your cause.
11. Complicated missions complicate fundraising.
12. Websites are your best fundraising employees.
13. You can't wake a donor pretending to be asleep.
14. Brands that chase all channels chase away funding.
15. Fundraising starts with boards and teams, not tactics.
16. CSR isn't just money: corporations are megaphones too.
17. Give donors a story to remember — not a fact to memorize.
18. Writing is a fundraising superpower, and ink ignites movements.
19. To get funding, be fundable and findable. Brand first, funding second.

 19 laws of fundraising is compiled by Kevin L. Brown