Sunday, April 21, 2024

Pseudo-Socialism समाजवाद

हम जब युवा होते है तो समाजवाद बहुत अच्छा लगता है, और समय जाते उसका सही स्वरूप क्या है वो पता चलता है।

1) 
साहेब : अगर तुम्हारे पास 20 बीघा खेत हैं तो क्या तुम उसका आधा 10 बीघा गरीबों को दे दोगे ?

भक्कू : हाँ दे देंगे…

2)
साहेब : अगर तुम्हारे पास 2 घर हैं तो क्या तुम एक घर गरीबों को दे दोगे ?

भक्कू : हाँ दे देंगे…

3)
साहेब : अगर तुम्हारे पास 2 Car हैं तो क्या तुम एक कार ग़रीब को दे दोगे ?

भक्कू : हाँ दे देंगे…

4)
साहेब : अगर तुम्हारे पास बीड़ी का बंडल है तो क्या उनमें से 2 बीड़ी तुम अपने साथी को दे दोगे ?

भक्कू : नहीं, बीड़ी तो बिल्कुल नहीं देंगे… 😬

5)
अब साहेब बहुत चकित हुए और उन्होंने पूछा कि तुम अपना खेत दे दोगे गरीबों को, घर दे दोगे, कार दे दोगे मगर अपनी बीड़ी क्यों नहीं दोगे ? इतना बड़ा-बड़ा बलिदान कर सकते हो और बीड़ी पर अटक गए ? आख़िर क्यों ?

भक्कू : ऐसा है कि हमारे पास न तो खेत हैं… न घर है और ना ही कार है। हमारे पास सिर्फ बीड़ी का बंडल ही है।

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Most of the Youth trapped in between 1 to 3 point, or when reach at point 4 they feel it's just single small thing, which we should not ask. But when they reach to end it's very late and they are exhausted their most of energy & time of their life.

Let's understand this long game and save our future generations from such thing.

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Thursday, April 18, 2024

Double Standard : दोहरापन

Case 1. पहले मैं बहुत ही नाटे कद का था फिर मेने #होरलिक्स और #बूस्ट मिल्क पाऊडर का विज्ञापन देख कर उसे पीना शुरू किया, अब मैं बैठे बैठे ही खड़े ऊँट की चुम्मी ले लेता हूं।🤣

Case 2. एक बारात मे अचानक से शार्ट सर्किट होने से अधेरा छा जाता है, बाराती और घराती दोनों परेशान फिर किसी ने #orbit_chwingum चबाकर दाँत दिखाए तो LED लाइट से अधिक प्रकाश हुआ, फिर क्या सेकड़ो लोगो को खम्बो के ऊपर मुँह मे orbit chwingum देकर खड़ा कर दिया और बारात मे पहले जैसा प्रकाश छा गया 🤣🤣

Case 3. एक व्यक्ति घंटो से मछलिया पकड़ने का प्रयत्न कर रहा था, पर उसके कांटे मे कोई मछली फस ही नहीं रही थी, तभी एक दूसरा व्यक्ति आता है, अपनी एक छड़ी पर 5-6 जगह #फेविक्विक की 5-6 बूँदे रखी पानी मे छड़ी को डाला और 2 सेकंड मे 5-6 मछलीया उसकी छड़ी मे चिपक गई, पहला व्यक्ति फुल अचम्भे मे 🤣🤣🤣

Case 4. पहले भारत मे कमर दर्द होना आम बात थी, लेकिन जैसे ही लोगो ने moove लगाना शुरू किया, कमर दर्द भारत छोड़कर चला गया 🤣🤣🤣🤣

Case 5. पहले मै स्वयं को साँवला समझता था, फिर मेने #फेयरहैंडसम क्रीम लगाना आरम्भ किया, अब मुझे देखकर लोगो की आंखे बंद होने लगती है इतना गोरा हो गया हूँ 🤣🤣🤣🤣🤣
उपरोक्त उदाहरण केवल कुछ एक उदाहरण है, जिनको देखकर मिया लार्ड (?) को कुछ भ्रामक नहीं लगा परन्तु जैसे ही #बाबा_रामदेव ने कहा के अश्वगंधा  को दूध के साथ लेने से वजन बढ़ाया जा सकता है, एलोवेरा, गिलोय का जूस बेहतरीन इम्युनिटी बूस्टर है आदि , बात भ्रामक लगने लगी ।

माननीयों(?) को इनसे कोई प्रॉब्लम नही बस बाबा रामदेव और #पतंजलि से है, भारतीय चिकित्सा पद्धति से है, #योग से है #आयुर्वेद से है 🤷‍♂️

अरे  अपनी कोई इज्जत नहीं तो कम से कम भारतीय न्याय प्रणाली की इज्जत का तो ख्याल रख लेते, विदेशी ड्रग माफियाओ के इतना भी क्या प्रेम जो जनता व राष्ट्र के हित अहित को भूले पड़े हो।

जज साहब(?) जिस दिन से बिज्ञापन बनने आरम्भ हुए है 99% भ्रामक ही होते है, आपकी आँखे अब खुली है क्या,🤔
वो भी बाबा के #भगवे चोले की चमक से या विदेशी सिक्कों की खनक से.......?

ये सवाल इसलिए खड़ा होता है, के न्याय का अर्थ होता है सबको समान देखना लेकिन आपके इस कृत्य मे पक्षपात दिख रहा है।

🚩🚩🚩🚩राम राम

Saturday, March 23, 2024

कलाओं का रहस्य

प्रभु श्रीराम १२ कलाओं के ज्ञाता थे, तो भगवान श्रीकृष्ण सभी १६ कलाओं के ज्ञाता हैं। चंद्रमा की सोलह कलाएं होती हैं। सोलह शृंगार  भी होता है।

 आखिर ये १६ कलाएं क्या है? उपनिषदों अनुसार १६ कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्‍वरतुल्य होता है।कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्च्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत आदि ऐसे शब्दों को जिनका संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रहकर बोध करने लगता है वही १६ कलाओं में गति कर सकता है।   

चन्द्रमा की सोलह कलाएं: अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। 

इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। उक्तरोक्त चंद्रमा के प्रकाश की १६ अवस्थाएं हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है। जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्र की इन सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ। व्यक्ति का देह को छोड़कर पूर्ण प्रकाश हो जाना ही प्रथम मोक्ष है।

मन की तीन अवस्थाएं:
 प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तीन अवस्थाओं का ही बोध होता है:- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। क्या आप इन तीन अवस्थाओं के अलावा कोई चौथी अवस्था जानते हैं?
 जगत तीन स्तरों वाला है:

१. एक स्थूल जगत, जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है।
२. दूसरा सूक्ष्म जगत, जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं और
३. तीसरा कारण जगत, जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

तीन अवस्थाओं से आगे: सोलह कलाओं का अर्थ संपूर्ण बोधपूर्ण ज्ञान से है। मनुष्‍य ने स्वयं को तीन अवस्थाओं से आगे कुछ नहीं जाना और न समझा। प्रत्येक मनुष्य में ये १६ कलाएं सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ इन सोलह कलाओं के नाम अलग अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।

१. अन्नमया, २. प्राणमया, ३. मनोमया, ४. विज्ञानमया, ५. आनंदमया, ६. अतिशयिनी, ७. विपरिनाभिमी, ८. संक्रमिनी, ९. प्रभवि, १०. कुंथिनी, ११. विकासिनी, १२. मर्यदिनी, १३. सन्हालादिनी, १४. आह्लादिनी, १५. परिपूर्ण और १६. स्वरुपवस्थित।
 
अन्यत्र १. श्री, २. भू, ३. कीर्ति, ४. इला, ५. लीला, ६. कांति, ७. विद्या, ८. विमला, ९? उत्कर्शिनी, १०. ज्ञान, ११. क्रिया, १२. योग, १३. प्रहवि, १४. सत्य, १५. इसना और १६. अनुग्रह।
 
कहीं पर १. प्राण, २. श्रधा, ३. आकाश, ४. वायु, ५. तेज, ६. जल, ७. पृथ्वी, ८. इन्द्रिय, ९. मन, १०. अन्न, ११. वीर्य, १२. तप, १३. मन्त्र, १४. कर्म, १५. लोक और १६. नाम।

१६ कलाओं का रहस्य:
 
१६ कलाएं दरअसल बोध प्राप्त योगी की भिन्न भिन्न स्थितियां हैं। बोध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा के प्रकाश की १५ अवस्थाएं ली गई हैं। अमावस्या अज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का।

१९ अवस्थाएं: भगवदगीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्म तत्व प्राप्त योगी के बोध की उन्नीस स्थितियों को प्रकाश की भिन्न-भिन्न मात्रा से बताया है। इसमें अग्निर्ज्योतिरहः बोध की ३ प्रारंभिक स्थिति हैं और शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ की १५ कला शुक्ल पक्ष की १ हैं। इनमें से आत्मा की १६ कलाएं हैं। आत्मा की सबसे पहली कला ही विलक्षण है। इस पहली अवस्था या उससे पहली की तीन स्थिति होने पर भी योगी अपना जन्म और मृत्यु का दृष्टा हो जाता है और मृत्यु भय से मुक्त हो जाता है।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥

अर्थात: जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।- (८-२४) भावार्थ: श्रीकृष्ण कहते हैं जो योगी अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के छह माह में देह त्यागते हैं अर्थात जिन पुरुषों और योगियों में आत्म ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, वह ज्ञान के प्रकाश से अग्निमय, ज्योर्तिमय, दिन के सामान, शुक्लपक्ष की चांदनी के समान प्रकाशमय और उत्तरायण के छह माहों के समान परम प्रकाशमय हो जाते हैं। अर्थात जिन्हें आत्मज्ञान हो जाता है। आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना।

Thursday, March 21, 2024

मन

अर्जुन ने अपनी निद्रा को कैसे जीता था ?

निद्रा (नींद) या सुप्त अवस्था का आभास मनुष्य को तब होता हैं जब उसका मन और तन (शरीर) थका हुआ हो! थकावट विहीन व्यक्ति को कोमल-से-komal शय्या पर भी नींद नहीं आ सकती हैं!

तो, अर्जुन थकावट (परिश्रम) को जीत चुके थे, उन्होंने अपने मन और शरीर दोनों पर नियंत्रण कर लिया था, उन्होंने पीड़ा और सुख दोनों को समान बना लिया था और ऐसे मनुष्य को योग में स्थित स्थितप्रज्ञ कहा जाता हैं!

कोई भी व्यक्ति निद्रा पर काबू अपने इंद्रिय नियंत्रण के द्वारा कर सकता हैं, यदि मैं आपको ये कहु की कुछ लेवल तक मैंने भी इसका नियंत्रण किया हैं तो वो आपको मज़ाक लगेगा परंतु सच ये हैं कि नींद (निद्रा) मेरे अनुसार आती हैं और मैं निद्र के नियमों को अपने अनुरूप बना रखा हैं, बिना मेरे आदेश के इसका आना मना हैं और ये बहुत से व्यक्ति कर सकते हैं, बस अर्जुन ने इसे पूर्णतः नियंत्रण कर रखा था और वो भी योग के द्वारा!

महाभारत मंथन
·
तीरंदाजी और इसके घटक

कृप ने तीरंदाजी की चार शाखाओं को इस प्रकार सिखाया,

मुक्त
जो हथियार आप दुसरो पर छोड़ सकते है मुक्त कहलाते है, वे धनुर्वेद की इस शाखा में हैं। और तीर/बाण चलना/छोड़ना का कौशल धनुर्वेद की इस शाखा के तहत एक उप शाखा है।

अमुक्त

जो हथियार दुसरो पर छोड़ नहीं सकते ​​अमुक्त की श्रेणी में आते हैं। इसमें आने वाले तीरों से निपटने के लिए 21 प्रकार के तलवार कौशल शामिल हैं। उदाहरण के लिए धृष्टदाम्युन और अर्जुन केवल सभी इक्कीस शैलियों में विशेषज्ञ थे। अधिकांश योद्धा केवल सात आठ शैलियों में विशेषज्ञ थे। धृष्टदाम्युन को इक्कीस शैलियों का उपयोग करते देख द्रोण को आश्चर्य हुआ।

मुक्तामुक्त

जो हथियार छोड़े जाते हैं और वापस बुलाया जा सकता है उन्हें धनुर्वेद की इस शाखा के अंतर्गत रखा जाता है। बहुत कम योद्धा भी इस शाखा के अंतर्गत आते हैं।
इसके दो खंड हैं: मंत्र और अस्त्र/हथियार। कई योद्धा मंत्र के द्वारा अस्त्र छोड़ सकते थे और उनको वापस लौटा लेने में समर्थ थे। कई योद्धा उन हथियार का उपयोग करके लौटा लेने में असमर्थ थे, जिन्हें फेंक दिया जाता था । भीम, कृष्ण, अर्जुन, सात्यकि विशेष रूप से केवल योद्धा ऐसे थे

मंत्रमुक्त

जो हथियार मंत्रों के नियंत्रण के साथ छोड़े जाते थे , और उन्हें बिना वापस बुलाने की विधि ज्ञात न हो और कभी हो ही नहीं, मंत्रमुक्त शाखा धनुर्वेद की है। यह शाखा युद्ध के नियमों के अनुसार उचित नहीं है।
धनुर्वेद को चार शाखाओं में हथियार पर भी वर्गीकृत किया गया है:

शास्त्र: हाथों में धारण किए जाने वाले हथियार।

अस्त्र : हथियार जो छोड़े जाते हैं।

प्रतिहार: हथियार से हथियारों का मुकाबला करने के लिए । सुरक्षा में दागीं गयी मिसाइलें । रक्षात्मक हथियार। रक्षात्मक कला।

परमस्त्र: सर्वोच्च हथियार। देव अस्त्र । जो जब छोड़ा जाए तो कार्य पूरा किये बिना न लौटे ऑटोमेटेड अस्त्र

धनुर्वेद को चार भागों में क्रिया या अंग पर भी वर्गीकृत किया गया है।

आदान
दुश्मन के तीर / हथियार को ​​नियंत्रण में रखना, तीर खींचना/छोड़ना।
दुश्मन के हथियारों को नष्ट करना/ नियंत्रण करना
इसके अलावा, घोड़े की पीठ से हथियारों का उपयोग करने की क्रियाएं इस शाखा के अंतर्गत आती हैं।

संधान: दो हथियारों या कलाओं या शैलियों को एक साथ जोड़ना और इसमें शामिल करना
उपचारात्मक अस्त्र
वायु अस्त्र; हवा या वातावरण का हथियार के रूप में का उपयोग करना
माया / भ्रामक अस्त्र
आविष्कार/माया

विमोक्ष: अदान का प्रतिलोम। अस्त्र के प्रयोग की शैली और कार्य
सम्हार: सूचनाओं का संकलन। किताबें!
संकलन, सूचना का नियमावली
धनुर्वेद का अध्ययन

कृपाचर्या ने इन चारों का उल्लेख किया।
 अर्जुन ने उपपांडवों को दस अंग या विधाएँ सिखाईं। (विमोक्ष यहाँ मोक्ष की भिन्नता है, समर या संकलन अर्जुन की सूची में नहीं है। फिर, कृप ने इन्हें अन्य शीर्षकों के तहत कवर किया हो सकता है। शिक्षण का तरीका सभी शिक्षकों के लिए अलग है। पहले दो समान हैं।)

मोक्षन: लक्षित वस्तु पर प्रहार मोक्षन है। विमोक्षा अनलक्ष्ति वस्तु पर प्रहार । कृप ने अपने छात्रों को अनारक्षित रिलीज़ की शिक्षा दी और अर्जुन ने अपने शिष्यों को लक्षित वस्तु पर प्रहार सिखाया।

निर्वर्तना: तीर छोड़ने के बाद, यदि आपको पता चलता है कि प्रतिद्वंद्वी कमजोर है या बचाव के लिए हथियारों के बिना तो महान योद्धाओं के पास तीर को वापस बुलाने का मंत्र था। इस कला को विनिरवत्ना कहा जाता है।

स्थाना: धनुष के विभिन्न भागों का उपयोग करना और विभिन्न पदों में तीर को लॉक करना स्थान कला है।

मुष्टि: अंगूठे के बिना एकल या कई तीरों को निर्देशित करने और फेंकने के लिए तीन या चार उंगलियों का उपयोग करना मुष्टि है।

प्रयोग: तर्जनी और मध्यमा अंगुली का उपयोग केवल शूट करने के लिए प्रयोग है। आप ऐसा करने के लिए मध्यमा और मध्यमा के अंगूठे का भी उपयोग कर सकते हैं।

प्रायश्चित अंग (प्रायश्चित विधि से भिन्न): चमड़े के दस्ताने का उपयोग रक्षात्मक हथियारों के रूप में तीर को रोकने के लिए या ज्याघाता (प्रत्यन्चा द्वारा हमला) या दुश्मन के धनुष की डोरी को पकड़ने के लिए किया जाता है जिसे प्रायश्चित अंग कहा जाता है।

मंडला: यह वह कला रूप है जहां रथ गोल गति में तेजी से आगे बढ़ता है और आप एक गतिशील लक्ष्य प्रस्तुत करते हुए तेजी से आगे बढ़ते हैं और अभी भी दुश्मनों पर ध्यान केंद्रित करना और उन्हें स्थिर मानना ​​है और उन पर ध्यान केंद्रित करना है, और इसके अलावा दुश्मनों का निशाना बनाना, स्थाना, मुष्टि, प्रयोग और प्रायश्चित अंग का उपयोग करना और अन्य कलाएं पूरी तरह से युद्ध के मैदान पर हावी होने के लिए।

रहस्य: यह ध्वनि के रूप में लक्ष्य या लक्ष्य को हिट करने के लिए उपयोग किया जाता था । इस कला में आंख बंद करके तीर चलने की योग्यता भी शामिल है।

तीरंदाजी के तीन विधान हैं:

1. प्रयोग: उपयोग।

2. उपसंहार: स्मरण।

3. आवर्ती: संकट निवारण, तीर चलाना।

किरात पर्व के दौरान अर्जुन स्वयं कला के स्वामी शिव से दो और विशेष विद्याएँ सीखें:

प्रायश्चित: यह धनुर्धर द्वारा किसी निर्दोष मारे जाने की स्थिति में जीवन में वापस लाने में सक्षम बनाता है। इस विद्या के ज्ञान के साथ अर्जुन सैनिकों की एक बड़ी संख्या पर परिणाम की परवाह किए बिना अस्त्र मार सकता था और उपयोग कर सकता है और वह केवल दुश्मनों को मार देगा और अपने सैनिकों और निर्दोष लोगों को जीवित रखने के लिए अस्त्र की शक्ति का उपयोग कर सकता था। अर्जुन को कई कारणों से इसका उपयोग करने की आवश्यकता नहीं की, जैसा की उन्होंने उद्योग पर्व में बताया है ।

प्रतिघात: इस विधा से धनुर्धर को शत्रु के अस्त्र की शक्ति या कोई भी अस्त्र का उपयोग करके उसे शत्रु के ऊपर प्रयोग करने में सक्षम हो जाता है

वायु विद्या के स्वामी हैं और वायुपुत्रों को इसका उत्तराधिकार प्राप्त है। हनुमान अपराजेय थे यदि आपने उस पर दिव्य अस्त्र छोड़ा हो तब भी और वही भीम के साथ था। यह देखते हुए उन पर कई दिव्यास्त्र नहीं छोड़े गए थे और यह उनका अपना विवेक था जिसने कुछ हथियारों को सफल होने की अनुमति दी, हनुमन ने ब्रह्मास्त्र का सम्मान किया और खुद को हिट होने दिया।

भीम ने अर्जुन को एक कला पढ़ाया जिसे प्रभंजन कहा गया। किसी वस्तु को टुकड़ों में फाड़ने की क्षमता , जैसे समाधि में प्रवेश करके है हवा का उपयोग करके टुकड़ों को स्थानांतरित करने की अनुमति दी और इसे आप की इच्छा के स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जा सकता है । अर्जुन ने उस कौशल का उपयोग जयद्रथ के शरीर से अलग हुए सिर को करने के लिए किया और उसे उस जगह भेज दिया जहां उसके पिता ध्यान लगा रहे थे, समाधि की अवस्था में अर्जुन मार्गदर्शक के रूप में अपने हाथों और कानों का उपयोग करके। यही कारण है कि अर्जुन के नामों में से एक इस कौशल और कर्म के लिए प्रभंजनजनसूताअमतजा है।

धन्यवाद

योग के आठ अंग हैं- (1) यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।

नींद को योग के द्वारा नियमन किया जा सकता हैं और ये केवल नींद तक ही सीमित नहीं हैं, इसके द्वारा आप समस्त इंद्रिय पर नियंत्रण कर सकते जैसे कि अर्जुन जब शिव की आराधना करते हैं तो वो न केवल नींद ब्लकि अन्य सभी इंद्रिय को नियंत्रित कर रखा था, भूख, प्यास, श्वास इत्यादि!

इन्द्रियों का नियमन प्रत्याहार के द्वारा की जाती थी:

प्रत्याहार :-

इन्द्रियों का निज विषयों से विमुख होकर चित्त के स्वरुप का अनुकरण करना या उसी में अवस्थित हो जाना ही प्रत्याहार है. इन्द्रियों का अवरोध चित्त ही है और जब चित्त ही रुक जायेगा तो फिर इन्द्रियाँ भी स्वतः अवरुद्ध हो जाएँगी. प्रत्याहार का सबसे बड़ा लाभ यह होता है की साधक को बहार का ज्ञान नही रहता .

इन्द्रियाँ वशीभूत हो जाती है. अत: चित्त के निरुद्ध हो जाने पर इन्द्रियां भी उसी प्रकार निरुद्ध हो जाती हैं, जिस प्रकार रानी मधुमक्खी के एक स्थान पर रुक जाने पर अन्य मधुमक्खियां भी उसी स्थान पर रुक जाती हैं।

आंख, कान, नासिका आदि दसों इन्द्रियों को ससांर के विषयों से हटाकर मन के साथ-साथ रोक (बांध) देने को प्रत्याहार कहते हैं।

प्रत्याहार का मोटा स्वरूप है संयम रखना, इन्द्रियों पर संयम रखना। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति मीठा बहुत खाता है कुछ समय बाद वह अपनी मीठा खाने की आदत में तो संयम ले आता है परन्तु अब उसकी प्रवृति नमकीन खाने में हो जाती है।

यह कहा जा सकता है कि वह पहले भी और अब भी अपनी रसना इन्द्रिय पर संयम रख पाने में असफल रहा। उसने मधुर रस को काबू करने का प्रयत्न किया तो उसकी इन्द्रिय दूसरे रस में लग गर्इ।

इसी भांति अगर कोर्इ व्यक्ति अपनी एक इन्द्रिय को संयमित कर लेता है तो वह अन्य इन्द्रिय के विषय (देखना, सुनना, सूंघना, स्वाद लेना, स्पर्ष करना आदि) में और अधिक आनन्द लेने लगता है। अगर एक इन्द्रिय को रोकने में ही बड़ी कठिनार्इ है तो पाँचों ज्ञानोन्द्रियों को रोकना तो बहुत कठिन हो जायेगा।

इन्द्रियों को रोकना हो तो अन्दर भूख उत्पन्न करनी होगी। इनको जीतना हो तो तपस्या करनी पड़ती है और तपस्या के पीछे त्याग की भावना लानी पड़ती है। वैसे हम तपस्या बहुत करते हैं। दुनिया में ऐसा कोर्इ व्यक्ति नहीं है जो तपस्या करता ही न हो।

पैसे की भूख है तो हम पता नहीं कहाँ-कहाँ जाते हैं। कहाँ-कहाँ से लाते हैं। क्या-क्या करते हैं। सुबह से लेकर रात्रि में सोने तक और जब होश में हैं तब से आज तक हम उसी के लिए लगे हैं।

र्इश्वर को प्राप्त करने की ऐसी भूख नहीं है। जब र्इश्वर को प्राप्त करने के लिए भूख नहीं है तो इन्द्रियों के ऊपर संयम नहीं कर पायेंगे हम।

कोर्इ चेतन अन्य चेतन को नचा दे तो समझ में आता है, (जैसे मदारी, भालू, बन्दर आदि को नचाता है), लेकिन कोर्इ जड़ किसी चेतन को नचा दे, समझना बड़ा कठिन है। लेकिन हो यही रहा है। हम अपने जड़ मन को अपने अधिकार में नहीं रख पा रहे हैं। बल्कि यह जड़ मन हमें नचा रहा है।

कैसे अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, इस बात को प्रत्याहार में समझाया है। एक को रोकते हैं तो दूसरी इन्द्रिय तेज हो जाती है। दूसरी को रोकें तो तीसरी, तीसरी को रोकें तो चौथी, तो पाँचों ज्ञानेनिद्रयों को कैसे रोकें ?

इसके लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण देकर हमें समझाया जाता है जैसे जब रानी मक्खी कहीं जाकर बैठ जाती है तो उसके इर्द-गिर्द सारी मक्खियाँ बैठ जाती हैं। उसी प्रकार से हमारे शरीर के अन्दर मन है।

वह रानी मक्खी है और बाकी इन्द्रियाँ बाकी मक्खियाँ हैं। संसार में से उस रानी मक्खी को हटाकर भगवान में बिठा दो। फिर यह अनियंत्रित देखना, सूंघना व छूना आदि सब बन्द हो जायेंगे। प्रत्याहार की सिद्धि के बिना हम अपने मन को पूर्णत्या परमात्मा में नहीं लगा सकते।

धन्यवाद

जयतु भारत 🚩